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चुनाव आयोग को सुधार की जरुरत

सच—झूठ
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चुनाव आयोग ने बड़े जोर—शोर से आनलाइन वोटर आईडी बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए उसने करोड़ो रुपए इस योजना को चालू करने और विज्ञापन में फूंके।  लेकिन इस योजना के बारे में चुनाव आयोग के अध्यक्ष की प्रेस कान्फ्रेंस और मीडिया में फोटो छप जाने के बाद कुछ अता—पता नहीं चल रहा है। हमारी सरकार के द्वारा चलाईं जा रही अधिकतर योजनाओं की यही हालत हैं। वह सिर्फ दो दिन मीडिया की सुर्खिया बनती है, सरकार की वाहवाही होती है, एक्सपर्ट लोगों को टीवी चैनल पर इन योजनाओं पर बहस करने की मजदूरी मिल जाती है। उसके बाद जब आम आदमी का पाला इन योजनाओं से पड़ता है तो उसे पसीने छूट जाते हैं कि जो—जो उसे बताया गया था, ऐसा तो कुछ भी नहीं है। यही हालत आकाश टेबलेट की भी है जो अभी तक जमीन पर नहीं उतरा।

मैंने जुलाई 2012 में आॅनलाइन वोटर आईडी का पता चेंज करवाने के लिए आवेदन किया था लेकिन अभी दिसंबर खत्म होने को हैं, उस एप्लीकेशन का स्टेटस अभी भी पेडिंग ही आ रहा है। मुझे लगा कि यह समस्या शायद मेरे साथ होगी लेकिन जब कुछ और लोगों से जानकारी चाही तो उनके साथ भी यही समस्या थी। जबकि चुनाव आयोग ने इसी बीच खूब सारे विज्ञापन देकर यह बताया कि उसके बीएलओ घर—घर जाकर वोटर आईडी कार्ड बनाएंगे। लेकिन यह कितना हास्यास्पद है कि उसके पहले के भी पेडिंग काम अभी तक पूरे नहीं हुए तो बीएलओ ने नए कार्ड क्या बनाए होंगे!

खैर, सच्चाई का पता लगाने के लिए चुनाव आयोग के कार्यालय में फोन किया तो, जैसे कि सरकारी कार्यालयों में होता है, फोन ही नहीं उठाते लेकिन कुछ देर ट्राई करने के बाद एक सज्जन ने फोन उठाया। आप उसे अपनी प्राब्लम विस्तार से बताते उससे पहले ही उसने अपने गले की झंझट दूसरे में डालने के लिए वहां का नंबर दे दिया। वहां पर बात की तो चुनाव आयोग के कर्मचारी ने बड़ी बेशर्मी से स्वीकार किया कि भैया आप तो खुशनसीब हो 4 महीने से ही पेडिंग है, मैं तो कई ऐसे लोगों को जानता हूं जिनका साल भर से है। अभी हम दूसरा काम कर रहे हैं। उसके बाद नया आदेश आएगा तो नए कार्ड बनेगा।

अगर चुनाव आयोग चाहता कि इस योजना में पलीता न लगे तो वह ऐसे प्रावधान कर सकता था कि एक बार आनलाइन आवेदन जमा हो जाना पर किसी न् किसी अधिकारी की जवाबदारी और काम न होने पर दंड का प्रावधान करता। आवेदन जमा होने के बाद उसके पूरे होने की तिथि भी पहले से ही सुनिश्चित करता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि सरकार खुद ही इन छेद को रखना चाहती है ताकि लीकेज का पानी पिछले दरवाजे से खुद वापस उसी तक पहुंच जाए।

अब बताइए कि चुनाव आयोग जो चुनाव सुधारों की बात करता है, नेताओं की नसीहतें देता है, क्या वह खुद सुधरा हुआ है। ऐसे में यही कह सकते हैं कि चुनाव आयोग को खुद सुधार की जरुरत हैं।

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